उत्तराखंड में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के बड़े-बड़े दावे करने वाली सरकार की हकीकत एक बार फिर उजागर हो रही है. पहाड़ी जिलों में स्वास्थ्य सेवाएं पहले ही दम तोड़ती नजर आ रही थी, लेकिन अब मुख्य शहरों के अस्पताल भी बीमार होते दिखाई दे रहे हैं. स्थिति यह है कि गंभीर मरीजों को इलाज के लिए दर–दर भटकना पड़ रहा है. हल्द्वानी के सोबन सिंह जीना बेस अस्पताल में बनी अत्याधुनिक ICU यूनिट सरकारी लापरवाही का ताजा उदाहरण है, चार साल पहले अस्पताल में करोड़ों की लागत से 10 बेड का हाई-टेक ICU तैयार किया गया था, लेकिन यह ICU आज भी बंद पड़ा है. महंगी मशीनें धूल खा रही हैं और मरीज इलाज के लिए दूसरे हायर सेंटर रेफर किए जा रहे हैं.
स्वास्थ्य महानिदेशक ने भी इस बंद ICU पर चिंता जताई है. उनका कहना है कि जब तक ICU के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर और तकनीकी स्टाफ की नियुक्ति नहीं हो जाती, तब तक इसे चलाना मुश्किल है. हैरानी की बात यह है कि चार साल में भी व्यवस्था अपनी जगह नहीं बन पाई. ICU बंद होने के कारण, विशेषज्ञ डॉक्टरों की तैनाती नहीं, टेक्निकल स्टाफ की भारी कमी, प्रशासनिक उदासीनता का खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है.
गंभीर मरीजों को देहरादून, दिल्ली और दूसरे हायर सेंटर भेजने की मजबूरी,आर्थिक बोझ और समय की बर्बादी हो रही है. करोड़ों की अत्याधुनिक मशीनें बेकार पड़ी हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था पर जनता का भरोसा टूटना, अस्पताल प्रशासन भी इस स्थिति से चिंतित है. वहीं मामले में बेस अस्पताल के सीएमएस डॉ. खड़क सिंह दुगताल का कहना है कि ICU चलाने के लिए आवश्यक विशेषज्ञ डॉक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी सबसे बड़ी बाधा है. आवश्यक नियुक्तियां होने पर ICU को तुरंत शुरू किया जा सकता है.
कुल मिलाकर करोड़ों की लागत से तैयार यह ICU स्वास्थ्य विभाग की योजनाओं और क्रियान्वयन पर बड़ा सवाल खड़ा करता है. ऐसे में सवाल उठता है कि हल्द्वानी शहर में ही स्वास्थ्य सुविधा के ये हाल हैं तो अन्य जनपदों की स्थिति क्या होगी. जो सरकार को आइना दिखा रही हैं. वैसे ही प्रदेश के पर्वतीय अंचलों में डॉक्टरों की कमी बनी हुई हैं, डॉक्टर मैदानी जिलों को छोड़कर पहाड़ नहीं चढ़ना चाहते. जिससे लोगों को इलाज के लिए शहरों का रुख करना पड़ता है और महंगे इलाज के लिए मरीजों को विवश होना पड़ता है.