राजधानी देहरादून ही नहीं बल्कि एलएसडी उत्तराखंड के लिए नया नाम है। यह खतरनाक ड्रग्स देवभूमि के युवाओं के लिए खतरे की घंटी मानी जा रही है। बड़े शहरों की रेव पार्टियों में इस्तेमाल होने वाली यह ड्रग्स गुमनाम रास्ते डार्क वेब के जरिये उत्तराखंड और देश के अन्य हिस्सों में पहुंच रही है।
इसे लेकर देहरादून पुलिस ने भी नई रणनीति के साथ काम शुरू कर दिया है। कोबरा गैंग के साथ-साथ अन्य तस्करों की कुंडलियां भी खंगाली जा रही हैं। शिक्षण संस्थानों के आसपास पुलिस ने अब खुफिया पहरा भी बैठाने का दावा किया है। हालांकि, इसमें कितनी कामयाबी मिलती है यह आने वाला वक्त बताएगा लेकिन पुलिस की यह कार्रवाई देश की चुनिंदा बड़ी कार्रवाइयों में से एक है।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक यह ड्रग्स आम ड्रग्स के मुकाबले अधिक खतरनाक है। इसका इस्तेमाल कभी 60 के दशक में होता था। इसके बाद अन्य सिंथेटिक ड्रग्स का चलन बढ़ गया तो इसके सौदागरों ने उनका सहारा लेना शुरू कर दिया। लेकिन, देहरादून में सिंथेटिक ड्रग्स की कभी भी एंट्री नहीं हो पाई।वर्तमान में स्मैक का चलन देहरादून में आसपास के राज्यों में सबसे ज्यादा माना जाता है। इसे लेकर पुलिस और एसटीएफ भी बड़ी कार्रवाई करती है। लेकिन, अब एलएसडी सभी प्रवर्तन एजेंसियों मसलन पुलिस, एसटीएफ और एनसीबी के लिए नई चुनौती मानी जा रही है। इसके लिए पुलिस अधिकारियों ने मातहतों को कड़े दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।लिसेर्जिक एसिड डायथाइलैमाइड यानी एलएसडी एक मादक पदार्थ है जिसमें सिंथेटिक केमिकल होता है। इसका ना कोई रंग होता है, न कोई खुशबू और न ही कोई स्वाद लेकिन इसका नशा बेहद खतरनाक होता है। बताया जाता है कि इसे लेने के 15 से 20 मिनट में नशा शुरू हो जाता है और लंबे समय तक रहता है। इस नशे से कई तरह की समस्याएं धड़कनें बढ़ना, ब्लड प्रेशर की समस्या, नींद और भूख गायब होना, घबराहट महसूस होती है। यहां तक कि हार्ट अटैक भी आ सकता है। ये लिक्विड, पाउडर और ब्लॉट्स तीनों रूप में मिल जाती है।