उत्तराखंड में हाथी शान संग चुनौती भी, व्यवहार आक्रामक, बढ़ी मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं

राज्य में दो हजार से अधिक हाथी हैं। यह गजराज राज्य के लिए शान के साथ चुनौती भी हैं। तीन साल में हाथियों के हमले में 27 लोगों की मौत हो चुकी है, इसके अलावा कई घायल भी हुए हैं। राज्य की बेहतर जैव विविधता और संरक्षण के चलते वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।राज्य में वर्ष-2020 की गणना के अनुसार, 2026 हाथी थे। विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-2023 के बीच हाथी के हमले में 27 लोगों की मौत हुई और 36 लोग घायल हुए। इसके अलावा फसलों को भी हाथी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

हाथी गढ़वाल के जंगलों से होते हुए कार्बेट टाइगर रिजर्व, तराई केंद्रीय वन प्रभाग, तराई पूर्वी वन प्रभाग के जंगल से होते हुए नेपाल तक जाते थे। गौला काॅरिडोर पर कब्जा होने से हाथियों का मूवमेंट प्रभावित हो रहा है। तराई केंद्रीय वन प्रभाग के डीएफओ यूसी तिवारी ने बताया, हाथियों की याददाश्त अच्छी होती है। हाथी उन इलाकों में भी पहुंच जाता है, जहां कभी उसका मूवमेंट होता था।

वास स्थल भी प्रभावित

वन भूमि हस्तांतारण, अतिक्रमण जैसे कारणों से वास स्थल भी प्रभावित हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, जंगल के किनारे गन्ना, धान की खेती के चलते भी गजराज फसलों को खाने के लिए आबादी वाले इलाकों में पहुंच रहे हैं। यहां पर कई बार उनको भगाने के लिए शोर आदि किया जाता है। इससे कई जगह उनके व्यवहार में आक्रामक होने की बात भी कही जा रही है।

ट्रेनों का रूट बन रहा मुसीबत

ट्रेनों की टक्कर और बिजली के करंट से हाथी मर भी रहे हैं। तराई केंद्रीय वन प्रभाग के अंतर्गत लालकुआं-गूलरभोज रेलवे ट्रैक, देहरादून-हरिद्वार, हरिद्वार-लक्सर रेलवे ट्रैक पर हाथियों के ट्रेन से टकराने की घटनाएं हो चुकी हैं। तराई केंद्रीय वन प्रभाग की एसडीओ शशिदेव के मुताबिक, एक दशक में 10 हाथियों की मौत हुई है। हादसों में कमी लाने के लिए रेलवे संग मिलकर कार्य किया जा रहा है। उधर, हरिद्वार वन प्रभाग में भी एक दशक में तीन हाथियों की मौत ट्रेन से कटने से हुई है।

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